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( ३७८ )
समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
मूयइ कहइ ते मूढ़ नर, जीवइ जिण चन्द सूरि । जग जंपइ जस जेहनउ जेह. हो पुहवि कीरत पडूरी ।। ऊ.। चतुरविध संघ चीतारस्यइ, ज्यां जीविस्यइ तां सीम । वीसारचा किम वीसरइ वीस हो निरमल तप जप नीम 18। ऊ.। पाटि तुम्हारइ प्रगटियउ, श्री जिन सिंह सूरीश । शिष्य निवाज्या तई सहु तई० रे, जतीयां पूरी जगीश।१०।ऊ.।
(अपूर्ण) श्री जिनसिंहसरि गीतानि
(१) राग-मेवाड़उ श्री गौतम गुरु पाय नमी, गाऊं श्री गच्छराज ।
श्री जिन सिंध सरीसरू, पूरवइ वंछित काज ॥ पूरवइ वंछित काज सहगुरु, सोभागी गुण सोह ए। मुनिराय मोहन वेलि नी परि, भविक जन मन मोह ए॥ चारित्र पात्र कठोर किरिया, धरम कारिज उद्यमी । गच्छराज ना गुण गाइस्युंजी,श्री गौतम गुरु पय नमी ॥१॥
गुरु लाहोर पधारिया, तेडाव्या कर्मचन्द ।
श्री अकबर ने सहगुरु मिल्या, पाम्यउ परमाणंद ॥ पामीयउ परमाणंद ततक्षण,हुकम दिउढी नउ कियउ । अत्यंत अोदर मान गुरु ने, पादसाहरे अकबर दियउ॥ धम गोष्ठि करतां दया धरता, हिंसा दोष निवारिया। आणंद वरत्या हुआ अोच्छव, गुरु लाहोर पधारिया ॥२॥
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