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समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जाल
(१३) श्री जिनसागरसूरि सवैया *
सोल भृङ्गार करइ सुन्दरी, सिर ऊपर पूरण कुम्भ धरइ । पिहिउं पहिउं पहकइ नफेरी, गृधुंधु दमामा की घूँस परइ ॥ गायइ गीत गान गुणी जन दान, पटंबर चीर पगे पधर । समयसुन्दर कहइ जिनसागरसूरि कउ, श्रावक ऐसो पैसारउ करइ ॥ १ ॥
(१४) ढाल - साहेली हे आंबलउ मोरीयड, ए गीतनी. साहेली हे सागर सूरि वांदियह,
जिण वांद्या हे हुवइ हरख पार साहेली हे सोम मूरति सोभा घणी, साहेली हे उत्तम
( ४१४ )
आचार ॥ सा ॥१॥
साहेली हे वयरागी गुरु वालहा, साहेली हे वांच सूत्र सिद्धांत |
साली हे तप जप किरिया आकरी,
साहेली हे दरसण शांत दांत ॥ सा ॥२॥
साहेली हे जिचंदरिका जेहु तु, साहेली हे सामल साहेली हे तेह वचन तिमहिज थयुं,
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सिरदार |
*[ जेसलमेरु नगरे आचार्य खरतरोपाश्रये यति चुन्नीलाल सप्रहे
स्वयं लिखित पत्रात् ]
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