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श्री जिन सिंहसूरि गीतानि
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राग --- सारङ्ग
आज कुं धन दिन मेरउ |
पुण्य दशा प्रगटी अब मेरी, पेखतु गुरु मुख तेरउ || . ॥ १ ॥ श्री जिन सिंघसूरि तुं हि तुहि मेरे जिउ में, सुपन में नहिंय अनेरउ । कुमुदिनी चंद जिसउ तुम लीनउ, दूर तुहि तुम्ह नेरउ ॥ श्रा ॥२॥ तुम्हारे दरसन आनंद मोपइ उपजति, नयन को प्रेम नवेरउ । समयसुन्दर कहइ सब कुंबल्लभ जिउ, तँ तिन थह अधि केरउ । आ. ३ ।
(६) वधावा गीतम्
आज रंग वधामणा, मोतियड़े चउक पूरावउ रे ।
श्री याचारिज श्राविया, श्रीजिन सिंह सूरि वधावउ रे । श्र० १ ॥ युगप्रधान जगि जाणिय, श्रीजिनचंद सरि मुणिंद रे । सहत्थि पाट थापिया, गुरु प्रतपइ तेजि दिणंद रे । आ० |२| सुर नर किन्नर हरखिया, गुरु सुललित वाणि वखाणइ रे । पातिसाहि प्रतिबोधियउ', श्री अकबर साहि सुजाण रे । आ०।३। बलिहारी गुरु वयणड़े, बलिहारी गुरु मुख चंद रे । बलिहारी गुरु नयणड़े, पेखहतां परमाणंद रे | श्र० |४| धन चापलदे कूखड़ी, धन चांपसी साह उदार रे । पुरुष रत्न जिहां ऊपना, श्री चोपड़ा साख शृङ्गार रे । आ०|५|
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१ प्रतिबृजव्यउ
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