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( ३८२ ) समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि गुरु जी मोन्या रे मोटे उंबरे जी,
सखि जसु जस त्रिभुव। मांहि रे । चा.॥७॥ मुझ मन मोह्यो गुरु जी तुम्ह गुणे जी,
सखि जिम मधुकर सहकार रे। गुरु जी तुम्ह दरसण नयणे निरखताँजी,
सखि मुझ मनि हरख अपार रे ॥चा.॥८॥ चिर प्रतपउ गुरु राजियउ जी,
सखि श्री जिनसिंघ सूरीश रे। समयसुन्दर इम वीनवइ जी,
सखि पूरउ माहरइ मनहि जगीस रे ॥चा.।।६।।
(४)
आज मेरे मन की आस फली। श्री जिनसिंह सूरि मुख देखत, श्रारति दूर टली। श्री जिनचंद्र सूरि सई हत्थइ, चतुरविध संघ मिली। साहि हुकम आचारिज पदवी, दीधी अधिक भली ॥२॥ कोड़ि वरीस मंत्री श्री करमचंद, उत्सव करत रली । समयसँदर गुरु के पद पंकज, लीनो जेम अली ।। ३॥
३ए
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