________________
श्री जिन सिंहसुरि गीतानि
( ३८७ )
गिरुप गच्छ खरतर छह, तेह तपउ तू राय हो- पूज जी 1 श्री जिन सिंह सूरीसरू, समयसुन्दर गुण गाँव हो पूज जी ॥६॥
(११)
1
प्रह ऊठी प्रणमु' सदा रे, चरण कमल चित्त लाइ | देऊ तीन प्रदक्षिणा रे, पातक दूरि पुलाइ |१| म्हारा पूज जी, तुम सु धरम सनेह । मुख दीठां सुख ऊपजे रे, जिम बापियउ मेह | आंकणी । सुह राई सुह देवसी रे, पूछू बे कर जोड़ि । विनय करी गरु बांदिय रे, तूटइ करम नी कोड़ि | म्हा. |२| मुखतां सुललित देणारे, आणंद अंग न माइ । देव धरम गुरु जाणियह रे, समकित निर्मल थाइ | म्हा. ३। भात पाणी अति सूकता रे, पड़िलाभू बार बार । ज्यू लाहऊ लखमी ताउ रे, सफल करू अवतार | म्हा. | ४ | गुरु दीवउ गुरु चंद्रमा रे, गुरु देखtes वाट । गुरु उपगारी गुरु बड़ा रे, गुरु उत्तारह घाट | म्हा श्रीजिनसिंघ सूरीसरू रे, चोपड़ा कुल सिणगार | समयसुन्दर कहइ सेवतां रे, श्री संघ नइ सुखकार | म्हा. | ६ |
(१२)
मुझ मन मोह्यो रे गुरुजी, तुम्ह गुणे जिम बाबीहड़' मेहो जी । मधुकर मोह्यो रे सुन्दर मालती, चंद चकोर सनेहो जी । मु. । १ ।
१ बामीयडर
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org