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समय सुन्दरकृति कुसुमाञ्जलि
श्री खरतरगच्छ राजियउ, जिन सासन मांहि दीवउ रे । समयसुन्दर कहइ गुरु मेरउ, श्रीजिनसिंघ सूरि चिरजीवउ रे | ६ | इति श्री श्री श्री आचार्य जिनसिंहसूरि गीतम् । श्री हर्षनन्दन मुनिना लिपि कृतम् ॥
(७)
राग - पूरवी गउड़उ
मोकू देहु वधाई | देहु बधाई देहु वधाई री ॥ अरी मोकु ० ॥
युग प्रधान जिनसिंघ यतीसर, नगर निजीक पधारे । देखि गुरु 'खबर करण कु हुँ आई ॥ रो० ॥ १ ॥ मन सुध साहि सिलेम मानतु है, मन मोहन गुरु माई | समयसुंदर कहइ श्री गुरु याये, श्रीति परम मनि पाई ॥ श्र०|२||
(८) चौमासा गीतम्
श्रावण मास सोहामणो, महियलि वरसे मेहो जी । बापिया रे पिउ पिउ कर, अम्ह मनि सुगुरु सनेहो जी ॥ अम मन सुगुरु सनेह प्रगट्यउ, मेदिनी हरियालियां | गुरु जीव जयगा जुगति पालड़, वह नीर परणालियां ॥ सुध क्षेत्र समकित बीज वावई, संघ आनंद अति घणउ । जिनसिंघसूरि करउ चउमासउ, श्रावण मास सोहामणउ ॥ १ ॥
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