SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 553
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ३८४ ) समय सुन्दरकृति कुसुमाञ्जलि श्री खरतरगच्छ राजियउ, जिन सासन मांहि दीवउ रे । समयसुन्दर कहइ गुरु मेरउ, श्रीजिनसिंघ सूरि चिरजीवउ रे | ६ | इति श्री श्री श्री आचार्य जिनसिंहसूरि गीतम् । श्री हर्षनन्दन मुनिना लिपि कृतम् ॥ (७) राग - पूरवी गउड़उ मोकू देहु वधाई | देहु बधाई देहु वधाई री ॥ अरी मोकु ० ॥ युग प्रधान जिनसिंघ यतीसर, नगर निजीक पधारे । देखि गुरु 'खबर करण कु हुँ आई ॥ रो० ॥ १ ॥ मन सुध साहि सिलेम मानतु है, मन मोहन गुरु माई | समयसुंदर कहइ श्री गुरु याये, श्रीति परम मनि पाई ॥ श्र०|२|| (८) चौमासा गीतम् श्रावण मास सोहामणो, महियलि वरसे मेहो जी । बापिया रे पिउ पिउ कर, अम्ह मनि सुगुरु सनेहो जी ॥ अम मन सुगुरु सनेह प्रगट्यउ, मेदिनी हरियालियां | गुरु जीव जयगा जुगति पालड़, वह नीर परणालियां ॥ सुध क्षेत्र समकित बीज वावई, संघ आनंद अति घणउ । जिनसिंघसूरि करउ चउमासउ, श्रावण मास सोहामणउ ॥ १ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy