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श्री जिन सिंहसूरि गीतानि ( ३७६ ) श्री अकबर आग्रह करी, काश्मीर कियो रे विहार ।
श्रीपुर नगर सोहामणं, तिहां वरतावी अमार ।। अमारि वरती सर्व धरती, हुओ जय जय कार ए। गुरु सीत तावड ना परिसह, सह्या विविध प्रकार ए । ५महालाभ जाणी हरख प्राणी, धीर पणुं हियड़े धरी। काश्मीर देश विहोर कीधो, श्री अकबर आग्रह करी ॥३॥ .
श्री अकबर चित रंजियो, ६ पूज्य नइ करइ अरदास ।
आचारिज मानसिंह करउ, अम मनि परम उल्लास ।। अम्ह मनि आज उलास अधिकउ,फागण सुदि बीजइ मुदा! सइंहत्थि जिणचंदसूरि दीधी, आचारिज पद संपदो ॥ करमचंद मंत्रीसर महोच्छव, आडंबर मोटउ कियो । गुरुराज ना गुण देखि गिरुया, श्री अकबर चित रंजियउ॥४॥
संघ सहू हरखित थयउ, गुरु नइ द्यइ अासीस ।
श्री जिनसिंह सूरीसरु, प्रतपे तू कोड़ि वरीस ॥ प्रतपे । कोड़ि वरीस, सहगुरु चोपड़ां चड़ती कला । चांपसी साह मल्हार, चांपल देवि माता धन इला ॥ पादसाह अकबर साहि परख्यो, श्री जिनसिंयसरि चिर जयउ। आसीस पभणइ समयसुंदर, संघ सहु हरखित थयउ ॥ ५॥
इत श्रीजिनसिंहसूरीणां जाड़ी गीतं समारम् ।।
१-२ गुरुराज, ३ पातिसाहि.४ गोठि,५गुरु, ६ गुरु,७ अधिक, ८ वेलि
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