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६ राग ३६ रागिणी नाम गर्भित श्री जिनचंद्रसूरि गीतम् ( ३६७ )
तोरी भक्ति मुझ मन मां वसी रे, साहि अकबर मानइ जस बाबर वंसी । गुरु के वंदणि तरसह सिंधुया, इया सारी गुरु की मूरतिया ॥ ८ ॥ गुरु जी तूं हिज कृपाल भूपाल, कलानिधि तँ हिज सबहि सिरताज,
यावर ए रीतइ गच्छगज । संकराभरण लंछन जिन सुप्रसन्न,
जिनचन्दसूरि गुरु कुं नति करूं ॥ ६ ॥ तेरी सूरत की वलिहारी तू पूर
स हमारी तँ जग सुरवरु ए । गुरु प्रणमरी सुरनर किन्नर धोरणी रे, मन वंछित पूरण सुरमणी रे ॥१०॥ मालवी गउड़ मिश्री अमृत थई,
वचन मीठे गुरु तेरे हर ताथइ । करवंदा गुरु कुं त्रिकालइ हरउ पंच प्रमाद रे । सबई कुं कल्याण सुख सुगुरु प्रसाद रे ॥ ११ ॥ बहु पर भांति व उच्छव सार, पंच महाव्रत घर गुरु उदार । हूं आदेस कार प्रभु तेरा,
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