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श्री जिनचन्द्रसूरि छंद
( ३७१ )
रायसिंघ राजा भीम राउल, सूर नये सुरतान | बड़ा बड़ा महीपति वयण मानइ, देय आदर मान ॥ गच्छपति गाइये जी, जिनचंदरि मुनि महिराण । अकबर थापियो जी, युगप्रधान गुण जाण ॥० ॥ १ ॥ काश्मीर काबुल सिंध सोरठ, मारवाड़ मेवाड़ | गुजरात पूरब गौड़ दक्षिण, समुद्रतट पयलाड़ || पुर नगर देश प्रदेश सगले, भ्रमह जेति भए । आषाढ मास अमीय वरसे, सुगुरु पुण्य प्रमाण ||ग० ॥२॥ पंच नदी पांचे पीर साध्या, खोडियउ खेत्रपाल ।
जल वह जेथ अगाध प्रवहण, थांभिया ततकाल ॥ ...कित किता कहूं वखाण ।
परसिद्ध अतिशय कला पूरण, रीझवण रायाण || ग० ||३|| गच्छराज गिरुयो गुणे गाढो, गोयमा अवतार | बड़ वखतवंत बृहत्खरतर, गच्छ कौ सिणगार ॥ चिरजीवउ चतुर विध संघ सानिध, करइ कोड़ि कल्याण । गणि समयसुंदर सुगुरु भेटया, सकल आज विहारण ॥ ४ ॥
श्री जिनचन्द्रसूरि गतिम्
राग - आसावरी.
भले री माई श्री जिन चंद्र सूरि आए ।
श्रीजिनधर्म मरम बूझण कुं, अकबर साहि बुलाये ॥ . ॥ १ ॥
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