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समय सुन्दरकृतिकुसुमाञ्जति
सोरठगिरि की जात्रा करण कुं, आपण री गुरु पाय भाग्य फल्यो च्व लोकपरयो ।। ३ ।।
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तँ कृपा पर दउलति दे मोहि सुं तेरउ भगत हुं री । गुरु जी तँ ऊपर जीउ राखी रहूँ री ।
इहु सयनी गुरु मेरा ब्रह्मचारी,
हूँ चरण लागू डर डमर बारी ॥ ४ ॥
हो निकेत नट नराइण के आगर,
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इस नृत्य करत गुरु के रागह । इसे शुद्ध नाटक होता गावत सुंदरी, वेणुवीणा मुरज वाजत घुमर घुघरी ॥ ५ ॥
रास मधु माधवइ देति रंभा,
सुगुरु गायंति वायंति भंभा । तेज पुँज जिम सोभइ रवि,
जुगप्रधान गुरु पेखउ भवि ॥ ६ ॥ सबहि ठउर वरी जयत सिरी,
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गुरु के गुण गावत गुजरी।
मारुणी नारी मिली सब गावत,
सुंदर रूप सोभागी रे. आज सखी पुण्य दिसा मेरो जागी रे ॥७॥
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