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समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
एजी श्री जिनदत्त चरित्र सुणी,
पतिसाहि भयौ गुरु राजिय रे । उमराव सबै कर जोड़ि खड़े,
पभणै अपणै मुख हाजिय रे॥ युग प्रधान किये गुरु कु.२,
गिगड़दं ५ ५ बाजिय रे । समयसुन्दर तूं ही जगत गुरु,
पतिसाहि अकबर गाजिय रे ॥६॥ एजी ज्ञान विज्ञान कला सकला,
गण देखि मेरा मन रीझिये जी। हिमायु को नन्दन एम अखे, __मानसिंह पटोधर कीजिये जी॥ पतिसाहि हरि थप्यो सिंहमूरि,
मंडाण मंत्रीसर बीजिये२३ जी। जिनचन्द्र अने१४ जिन सिंह सरि,
चन्द्र सूरिज ज्यु प्रतपीजियेजी ॥७॥ एजी रीहड़ वंश विभूषण हंस,
... खरतर गच्छ समुद्र ससी। प्रतप्यो जिन माणिक सूरि के पाट१५,
प्रभाकर ज्यु प्रणमू उलसी ॥ १२ चामर छत्र मुरातत्र भेष्ट, १३ कीजिये १४ पटे १५ पट्ट।
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