________________
युगप्रधान श्री जिनचन्द सूर्यष्टकम
( ३६३ )
समयसुन्दर के प्रभु धन्य गुरु,
पतिसाहि अकब्बर जो परखे ६ ॥३॥ एजी अमृत वाणि सुणी सुलतान,
ऐसा पतिसाहि हुकम्म किया । सब आलम मांहि अमारि पलाइ,
बोलाय गुरु फुरमाण दिया । जग जीव दया भ्रम दाखण ते,
जिन शासन मई जु सोभाग लिया। समयसुन्दर कहे गुणवंत गुरु,
__हग देखी हरखित होत हिंया ॥४॥ एजी श्री जी गुरु ध्रम गोठ१० मिले,
सुलतान सलेम अरज करी । गुरु जीवदया नित चाहत११ है,
चित अन्तर प्रीति प्रतीति धरी ।। कर्मचन्द बुलाय दियो फुरमाण,
छोड़ाइ खंभाइत की मच्छरी । समयसुन्दर कहइ सब लोगन मई,
जु खरतर गच्छ की ख्यात खरी ॥॥
६ टोपी बस ऽमावस चन्द उदय अज तीन बताय कला परखे ( मुद्रित में पाठांर एवं पंक्ति कार नीचे) ७ गुरु, ८ भव्य इम, १० ध्यान, ११ प्रेम धरै,
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org