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युगप्रधान श्री जिनचन्द्रसूरि गीतम्
(३६१ )
जिण जाणि जुगतउ शिष्य जिणसिंघ,सरि पाटइथप्पियो। सई हत्थि आचारिज पद दे, सूरि मंत समप्पियो । अवलिया अकबर साहि हुकमइ हुयउ सुजस गरिट्टओ। सो गुरु श्री जिनचंद सूरि, धन्न नयणे दिट्टओ ॥१७॥ संग्राम संभ्रम मंत्रि कर्मचन्द, कुल दिवाकर दीप्पियो । गुरु राज पद ठवणउ करायउ, सवा कोड़ि समप्पिो । आणंद वरत्या हुया उच्छव, वसुह मांहि वरिट्टओ। सो गुरु श्री जिणचंद सूरि, धन्न नयणे दिट्टयो॥१८॥
॥ कलश ॥
आज हुया आणंद, आज मन वंछित फलिया, ___ आज अधिक उछरंग, आज दुख दोहग टलिया। श्री जिणचंद मुणिंद, सूरि खरतर गच्छ नायक,
रीहड़ कुलि सिणगार, सार मन वंछित दायक ।। लाहोर नयर उच्छव हुया, चिहुँ खंडि : स विस्थारिया। कर जोड़ि समयसुंदर भणइ,श्री पूज्य मलई पधारिया ॥१६॥
युगप्रधान-श्रीजिनचन्द्रसूर्यष्टकम् .. ए जी संतन के मुख वाणि सुणी,
जिणचंद मुणींद महंत जती।
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