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यु• जिनचन्द्रसूरि गीतम्
( ३५६ )
आरति चिंता सयल खूरई, पूरई मन हो । सो गुरु श्री जिणचंदरि, धन्न नयणे दि ॥ ७ ॥ जो चउद विद्या पारगामी, सयल जण मग मोह ए । अति मधुर देस अमृतधारा, अबुह जिय पड़िवोह ए ॥ कलिकाल गोयम सामि समवडि, वयण अमृत मिश्र । सो गुरु श्री जियचंदसूरि, धन्न नयणे दिट्ठो ॥ ८ ॥ पुर नयर गामई ठाम ठामईं, गुरु महोच्छव अति घणा । कामिनी मंगल गीत गावइ, रलिय रंगि वधामणा ।। गुरुराज चरणे रंग लागउ, जाणि चोल मजिओ । सो गुरु श्रीजिणचंद्रसूरि, धन्न नयणे दि ॥ ६ ॥ इक दियइ पाठक पद प्रधानं, वलिय वाचक गणि पदं । इक दियs दीक्षा सुगुरु शिक्षा, एक कुं सुख संपदं ॥ इक माल रोहण भविय बोहण, जाणि सुरतरु तुट्टो । सो गुरु श्री जियचंद सूरि, धन्न नयणे दिश्रो ॥ १० ॥ दोहा
इक दिन अकबर भूपति इम भाखरं, मंत्रीसर कर्मचंद सु दाखइ ।
तुम्ह गुरु सुणियह गुञ्जर खंडह,
सिद्ध पुरुष सुप्रताप अखंड ।। ११ ।। वेगि बोलायउ लिखि फुरमाणं, श्रादर अधिक देह बहु मांणं ।
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