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समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
जुगप्रधान जिनचन्द मुनीसरा,
तूं साहिब मेरा ॥१२॥ दुरित मे वारउ गुरु जी सुख करउ रे,
श्री संघ पूरउ आशा । नाम तुमारइ नवनिधि संपजइ रे,
लाभइ लील विलासा ॥१॥ धन्या सरी रागमाला रची उदार,
छः रग छतीसे भाषा भेद विचार ।। सोलसइ बावन विजय दसमी दिने सुरगुरु वार, थंभण पास पसायइ त्रंबावती मझार ॥१४॥१०॥ जुगप्रधान जिनचंद सूरींद सार,
चिरजयउ जिनसिंहसरि सपरिवार । १०। सकलचंद मुणीसर सील उमतिकार,
समयसुंदर सदा सुख अपार ॥१०॥१५॥ इति श्री युगप्रधान श्री जिनचंद्र सूरीणा रागमाला सम्पूर्णा कृताच समयसुन्दर गणिना लिखिता सं० १६५२ वर्षे कार्तिक सुदि ४ दिने
__ श्रीस्तभतीर्थनगरे। श्रीजिनचन्द्रसूरि चन्द्राउला गौतम
ढाल-चन्द्रासला नी श्री खरतर गच्छ राजियउ रे, माणिक सरि पटधारो सुन्दर साधु सिरोमणि रे, विनयवंत परिवारो
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