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समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
चार प्रत्येक बुद्ध संलग्न गीतम् ढाल-साहेली हे आंवलउ मउरीयउ, एह गीतनी । चिहुं दिशि थी चारे आवीया,
समकालइ हे यक्ष देहरा मांहि । सहेली हे वांदउ रूड़ा साधजी,
जिण वांदया हे जायइ जनमना पाप ॥ सहे०॥ यक्ष चउमुख थयउ जाणि नइ,
मत आवइ हे मुझ पूठि के बांहि । करकंडु तिरणउ काढीयउ,
काना थी हे खाजि खणवा काजि । स । दुमुख कहइ माया अजी,
राखी कां हो छोड यउ सगलउ राज ।।स०।२।। नमि कहइ निंदा कां करइ,
निंदा ना हो बोल्या मोटा दोष । नग्गई कहइ निंदा नहीं,
हित कहितां हो हुवइ परम संतोष ।।स०।३॥ समकाले च्यारे चव्या,
समकाले हे थया कुल सिणगार ॥ स.॥ समकालइ संयम लीयउ,
समकाले हे गया मुगति मझार स०४॥
निदा ना
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