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श्री ऋषिदत्ता गीतम्
( ३२७ )
तापस साथि लीयउ वीनति करि,
परणी रुकमणी नारि रे । एक दिन कहइ रिषिदत्ता सुं प्रियु,
केहवउ हूंतउ प्यार रे॥६॥ रि०॥ जीवन प्राण हुंती ते माहरइ,
तब रुकमणी कहइ एम रे । पणि राक्षसणी दोस देहनइ,
मइ दुख दीधउ केम रे ॥१०॥ रि०॥ रुकमणि नइ निभ्रांछि नांखी,
काष्ट भक्षण करइ राय रे। मुई पणि मेलं रिपिदचा,
कहइ मुनि करउ जउ पसाय रे ॥११॥ रि०॥ कहइ राजा मांगइ ते आएँ,
राखउ थांपणि सुब्भ रे।। आप मरी नइ रिषिदत्ता नइ,
देई म किसि तुझ रे ॥१२॥ रि०॥ इम कहिनइ परियछि मांहि पइठउ,
. ऊषधि कीधी दर रे । . .. रिषिदत्ता रमझमती प्रावी,
प्रगट्यउ पुण्य पडूर रे ॥१३॥ रि०॥ रिषिदत्ता लेई घरि आव्यउ,
पणि मित्र न करइ दुखु रे ।
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