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समय सुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
माणस मारि मांस ले मँक, रिषिदत्ता नइ पासि रे ।
( ३२६ )
लोही सुं मूँहडउ बलि लेपइ, आवी निज आवासि
राक्षसणी जाणी राय कोप्यउ, गद्दह ऊपरि चाडि रे
कलंक दई नइ बाहिर काढी,
मुँह जाणी चंडालइ मँकी,
सारउ नगर भमाड़ि रे ।। ५ ।। रि० ॥
मारण खड़ग देखि नड़ महिला, धरती पड़ी अचेत रे ।
रे ।। ४ ।। रि० ।।
पुरुष थई औषधि परभावर,
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चरम सरीरी हेत रे ॥ ६ ॥ रि० ॥
सीतल वाय सचेतन कीधी, पहुँती बाप नह ठाम रे ।
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तिथ ठाम तापस मिल्यउ तेजि,
रिषिदत्त तोपस नाम रे ।। ७ ।। रि० ।।
वलि रुकमणी परवा चान्यउ, कुमर कनकरथ तेह रे !
प्रगट्यउ परम ससनेह रे ॥ ८ ॥ रि० ॥
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