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पाटण मंडन श्री जिनकुशल सूरि गीतम् ( ३५५ )
धि व्याधि आरति चिंता, संकट विकट विकार दादाजी । दुख दोहग दूरइ हरउ, तुम्हे अड़वड़ियां आधार दादाजी | उ . |२| सदगुरु समरयां साद घउ, सेवक नी करउ सार दादाजी । परतिख परता पूरवउ, तुम्हे जागती ज्योत उदार दादाजी | उ . | ३ | पूजउ गुरु पगला भला, पूनिम दिन बुधवार दादाजी । केसर चंदन मृगमदा, अगर कुसुम अधिकार दादाजी | उ. । ४ । गीत गावे तान मान सु, मादल ना धौंकार दादाजी । दान मान आप घरणा, भावना भावउ उदार दादाजी । उ. ५। श्री जिनकुशलसूरी सरु, मन वंछित दातार दादाजी | पाटण संघ पूरउरली, भगइ समयसुन्दर सुविचार दादाजी | उ . ६ |
अहमदाबाद मंडण श्री जिनकुशलसूरि गीतम्
दादो तो दरसण दाख, दादो मोहिला सुखिया राखड़ हो । दादाजी दौलत दो ||
दादो तो चिंता चूर, दादो परतिख परता पूरइ हो । दा. । १ । दादो तो बिछड़ियां मेल, दादो ठींभर दुसमण ठेलइ हो । दा.| २ | दादो तो समरांव, दादो परघल लक्ष्मी लावइ हो । दा. | ३ | दादो तो दुसमण दाट, दादो विधन हरइ वाट घाटइ हो । दा. ४ | दादो तो साचो जाइ, दाझे बोल ऊपर पिरा आगर हो । दा. ५ | दादो तो हाजरा हजुरह, दादो अहमदाबाद पडूरह हो । दा | ६ | दादो तो वुशल कहावर, हम समयसुन्दर गुण गावइ हो । दा. ७
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