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दादा श्री जिन कुशल सूरि गीतम् ( ३५१ ) दादा वरसे मेह नै रात अंधारी, वाय पिण सबलौ वायौ । पंच नदी हम बइठे बेड़ी, दरिये हो दादा दरिये चित्त डरायो जी।२।। दादा उच्च भणी पहुँचावण आयो, खरतर संघ सवायो। समयसंदर कहे कुशल कुशल गुरु, परमानंद सुख पायो जी। स.३।
देरावर मंडण श्री जिनकुशलसरि गीतम देरावर दादो दीपतो रे,
डिग मिग कांइ डम डोल रे जात्रीड़ा । परचा दादो पूरवे रे लो,
तीरथ को इण तोल रे जात्रीड़ा ॥१॥ बोहथ तारे दादो डूबतोरे लो,
अड़बड़ियां आधार रे जात्रीड़ा । समरयां दादो साद दय रे लो,
सेवक अपणा संभाल रे जात्रीड़ा ॥२॥ पुत्र पिण आपे अपुत्रियां रे लो,
निरधनियां नइ धन्न रे जात्रीड़ा । दुखियां ने भाजे दुख सही रेलो,
परतिख दादो प्रसन्न रे जात्रीड़ा ॥३॥ चिंता चुरे चित्तनी रे लो,
ए गुरु अंतरजामी रे जात्रीड़ा।
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