________________
श्री राजुल रहनेमि गीतम्
( ३४१ )
अंग उघाड़ा देखिनइ रे, जाग्यउ मदन विकारो रे। मुनिवर प्रारथना करइ रे, ल्यउ जोवन फल सारो रे ।३। दू.। राजमती कहइ आपणउ रे, उत्तम कुल संभारउ रे । विषय तणां फल पाडया रे, साधजी चित्त विचारउ रे ।४। दू.। सतिय वचन इम सांभलि रे, वइरागह मन वाल्यउरे। समयसुन्दर रहनेमि जी रे, सील अखंडित पाल्यउ रे ।। दू. ।
इति श्री रथनेमि गीतम् सं० ॥४॥
श्री राजुल रहनोमि गीतम् राजुल चाली रंगसुं रे लाल, यदुपति वंदण जाइ सुकुलीणी रे । मेहसुभीनीमारगेरे लाल,ऊभी गुफा मांहे बाइ सुकुलीणी रे।१। राजुल कहइ रहनेमि जी रेलाल, मत कर म्हारी आलि सुकुलीणी रे। आपां कयाकुले उपन्यारेलाल,चतुर तुं चारित पाल सुकुलीणीरे २। अंग उघाड़ा देखि नइ रे लाल, चूक्यउ रहनेमि चित्त सुकुलीणी रे । आव आपे सुख भोगवां रे लाल, पालस्यां पूरब प्रीत सकुलीणीरे।३। लौकिक न रहइ लोकमारे लाल, विषय थकी मन वाल सुकुलीणी रे। काम भोग भुंड्या कह्यारेलाल, नरक ना दुख निहाल सुकु० रे।४। दूध उफाणे दूर कियउरेलाल, राख्यउ नइ रहनेमि शील सकु० । समयसुंदर साबास द्यइ रे लाल,............. 'सुकुलीणी रे।।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org