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समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
साजण सरसी' प्रीतड़ी.
कीजइ धुरि थकी जोय रे। कीजीयइ तउ नवि छोड़ियइ,
कंठइ प्राण जां होय रे। ३ । प्रि० । चउमासु चित्रसालीयइ,
रह्या मुनिवर राय रे । नयण अणीयाले निरखती,
गोरी गीत गुण गाय रे । ५ । प्रि० । कोसा वचन सुणी करी,
मुनिवर नवि डोला रे । समयसुन्दर कहइ कलियुगइ, थूलिभद्र न को तोलइ रे । ५ । प्रि० ।
इति श्री स्थूलिभद्र गीतम्
श्री स्थूलिभद्र गीतम प्रीतड़ी प्रीतड़ी न कीजइ हे नारि परदेसियां रे,
खिण खिण दामइ देह । बीछड़ियां बोछड़ियां वाल्हेसर मेलउ दोहिलउ रे,
सालइ अधिक सनेह पी.।१। आजनइ आजनइ आव्या रे काल्हि चालस्यइ रे, १ सेती
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