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श्री सननकुमार चक्रवर्ती गीतम्
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राखी ऋषि नी रेखा हो राजेश्वर जी,
योगीन्द्र फिरि पाछउ जोयउ नहीं जी ॥४॥ वरस सातसह सीम हो राजेश्वर जी,
बहुली हो वेदन सही साध जी। निरवाह्या व्रत ताम हो राजेश्वर जी,
देवलोक तीजइ हुवउ देवता जी ॥४॥ साधु जी सनतकुमार हो राजेश्वर जी,
चक्रवर्ती चौथउ तिहां थी चवी जी। उत्तम लहि अवतार हो राजेश्वर जी,
शिव सुख लेस्यइ मुनिवर सास्वता जी ॥६॥ इंद्र परीक्ष्या आय हो राजेश्वर जी,
हुँ बलिहारी जाऊं एहनी जी। प्रणम्यां जायइ पाप हो राजेश्वर जी,
समयसुन्दर कहइ सुख सदा जी ॥७॥
श्री सनत्कुमार चक्रवर्ती गीतम् जोवा आव्यो रे देवता, रूप अनोपम सार । गरब थकी विणसी गयउ, चक्रवर्ति सनतकुमार ॥१॥ नयण निहालउ रे नाहला, अबला करइ अरदास । एकरस्यउ अवलोइयइ, नारी न मूकउ नीरास ॥रान०॥ काया दीठी रे कारिमी, जाण्यउ अथिर संसार । राज रमणि सवि परिहरी, लीधउ संजम भार ॥३शान०॥ १ मणि माणिक भंडार
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