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श्री स्थूलिभद्र गीतम् ( ३१७) म करिस खांचा तोणि हो, हां.
तू पूरि मनोरथ मोरड़ा ॥रावा.थू.॥ लाख टका नी प्रीति हो, हां.
मन मान्या स किम तोडियइ । वा। कीजइ प्रीत न होइ हो, हां.
बेटी पिण सांधी जोड़ियइ ॥३॥वा.थू.।। जोरइ प्रीत न होइ हो, हां.
दे शील सं रंगी चूनडी । वा। साचउ धर्म सनेह हो, हां०
आपे करस्यां सुंदर बातडी ॥४ावा.थू.।। ___ श्री स्थूलिभद्र गौतम ढाल-सुण मेरी सजनी रजनी जानइ, एहनी । पिउड़ा मानउ बोल हमारउ रे,
आपणी पूरब प्रीति संभारउ रे ॥१॥ श्रा चित्रशाला आ सुख सेज्यां रे,
मान मानइ तउ केही लज्या रे॥२॥ वरसइ मेहा भीजइ देहा रे,
___ मत दउ छेहा नवल सनेहा रे॥३॥ कहइ मुनि म करि वेश्या आदेशा रे,
सुण उपदेसा अमृत जैसा रे ॥४॥ १अंदेशा
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