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... श्री शालिभद्र गीत
(३०५ )
चडते मन परिणाम, कीधी मास संलेखणा जी हो। हो मुनि. च.। सारथा आतम काज, सर्वारथ सिद्धि गया जी हो । हो मुनि.सा. महाविदेह मझारि', मुगतिं जास्यइ मुनिवरु जी हो । हो मुनि.महा.। वंदना करूं वार वार, समयसुंदर कहइ हुँ सदा जी हो। हो मुनि.वं.।।
__ इति श्री धन्ना शालिभद्र गीतम् ।।४६।। सं.१६६५ वर्षे मगसिरस्यामावास्यां जोङवाड़ाग्रामे पं.हरिराम लिखितम्।
श्री शालिभद्र गीतम्
राग-भूपाल शालिभद्र आज तुम्हानइ अपणी माता,
पडिलाभस्यइ सु सनेहा रे । श्री महावीर कहइ सुणि शालिभद्र,
मत मनि धरई संदेहा रे ॥ सा. ॥१॥ वीर वचन सुणि विहरण चाल्यउ,
सालिभद्र मन संतोषी रे। आयउ घरि अोलख्यउ नहीं माता,
तप करि काया सोषी रे ॥सा.॥२॥ विन विहर यइ पाछउ वल्यउ मुनिवर,
मन मांहि संदेह प्रायरे।
१ उत्तम लहि अवतार
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