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श्री ढंडा ऋषि गीतम्
(२८१ )
मुगति पहुँता अनुक्रमि मुनिवर,
श्री ढंढण रिषि रायो जी। समयसुन्दर कहइ हुँ ए साधना,
प्रतिदिन* प्रणमें पायो जी ॥६॥ अढा०॥ इति श्री ढंढण ऋषि गीतम् ॥ ६॥ सर्वगाथा २१
श्री श्रमदावाद पार्श्ववर्तिनि ईदलपुरे नगरेमध्ये चतुर्मासी कृत्त्वा मासकल्पस्थितैः श्रीसमयमुदरोपाध्यायैः कृतं लिखितं च सं० १६६२ वर्षे मार्गशीर्ष सुदि १ दिने ॥४५॥ ।
श्री दशारण भद्र गीतम
राग-रामगिरी; जाति-कड़खानी । मुगध जन वचन सुणि राय चित चमकियउ, अहो अहो देव नउ राग देखउ । हूँ महावीर नइ तेम वांदीसि जिम, किण न वांद या तिका परठि पेखउ ॥१॥ धन्य हो धन्य हो राजा दसणभद्द तू, आपणउ बोल परमाण चाड्यउ ।
*नित नित । (लींवड़ी भंडार प्रति)
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