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श्री आदित्ययशादि ८ साधु गीतम्
( २५७ )
हाथी साह उद्यम हूयउ, तिण ए करावी ढालो जी।। समयसुन्दर करइ वंदणा, ते साधजी नइ त्रिकालो जी।३।सं। इति श्रीआदीश्वरप्रतिबोधितनिज १८ पुत्रसाधुगीतम् ॥ ३६॥ श्री आदित्ययशादि ८ साधु गौतम
राग-भूपाल, प्रहरात् कालहरा गेवा । भावना मनि सुद्ध भावउ, धरम मांहि प्रधान रे। भरत प्रारीसा भवन मई, ला, केलव ज्ञान रे ।भा०
आदित्य नइ महाजसा अतिबल वलभद्र नइ बलवीर्य। दंडवीरिज जलवीरिज राज कीरतिवीरिज धीर्य रे ।२।भा०।
आठ राजा एण अनुक्रमि, इन्द्र थाप्या जाणि रे। रिषभदेव ना मुकुटधारी, अरध भरत मई आणि रे ।३।भा०। भरत नी परि भवन मांहि, पाम्यं केवल ज्ञान रे । समयसुन्दर तेह साधु नु, घरइ निर्मल ध्यान रे।४।भा०। इति श्री आदित्ययशादि ८ साधु गीतम् ॥ ३७॥
श्री इला पुत्र गीतम्
राग-मल्हार ढाल-मोरा साहिब हो श्री शीतलनाथ कि
वीनति सुणउ एक मोरड़ी। एह गीतनी. इलावरध हो नगरी नुं नाम कि,
सारथवाहि तिहां वसइ ।
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