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( २७० )
समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
पड़ीय विधाधर पासि हो जी
पणि सीलराख्यउ सावतउ लाल ॥१०॥२॥ पद्मरथ भूपाल हो जी,
घोड़इ अपहरयउ आवियउ । तिण ते लीधउ बाल हो जी,
पुत्र पाली पोढउ कियउ लाल पु०॥३॥ शत्र नम्यां सहु आय हो जी,
नमि एहवउ नाम आपियउ । थयउ मिथिला नउ राय होजी,
सहस अंतेउरि सु रमइ लाल ||स०॥४॥ दाह ज्वर चड्यउ देह हो जी,
करम थी को छूटइ नहीं।। अथिर सहु रिधि एह हो जी,
नमि राजा संजम लीयउ लाल ॥न०॥॥ इंद्र परीख्यउ आय हो जी,
चडते परिणामे चड्यउ । प्रणम्यां जायइ पाप हो जी,
समयसुंदर कहइ साधनइ न०॥६॥ इति श्री तृतीय प्रत्येक बुद्ध नमि गीत ॥४२॥
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