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लाघी वांस नी लाकड़ी हूं वारी,
थयउ कंचणपुर राय रे हुं बारी लाल । बाप सु संग्राम मांडियउ हुंवारी,
समय सुन्दर कृति कुसुमाञ्जलि
साधवी लियउ समझाय रे हुं बारी लाल || ० | ३ || वृषभ सरूप देखी करी हुं वारी,
प्रतिबोध पाम्पउ नरेस रे हु' वारी लाल | उत्तम संजम आदरच हु वारी,
देवता दीधर वेस रे ह वारी लाल || ४ || करम खपाषी मुगति गयउ हु वारी,
करकंडू रिषि राय रे ही वारी लाल । समयसुंदर कहइ ए साधनइ हुंवारी,
प्रणम्यां पाप पुलाय रे हुंवारी लाल |०|५|| इति श्री करकंडू प्रत्येक बुद्ध गीतम् ||४०||
श्री दुमुह प्रत्येक बुद्ध गीतम ढाल - फिट जीव्यु थारू रामला रे ।
नगरी कंपिला नउ धणी रे, जय राजा गुण जाण । न्याय नीति पालह प्रजा रे, गुणमाला पटराणि रे ॥ १ ॥ दुमुह राय बीजउ प्रत्येक बुद्ध ।
वयरागह मन वालियउ रे, संयम पलह सुद्ध रे ॥दु०आंकणी॥ धरती खणतां नीसरचड रे, मुगट एक अभिराम ।
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