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श्री थावचा ऋषि गीतम्
(२६७ )
रिषि थावचउ ख्यड़उ, उत्तम अणगारो। गिरुया ना गुण गावतां, हियडइ हरप अपारो ॥२॥रि०॥ बत्तीस अंतेउर परिवरयउ, भोगवइ सुख सारो। नेमि समीपइ संजम लियउ, जाण्यउ अथिर संसारो॥३ रि०॥ बत्तीस अंतेउर परिहरी, लीधउ संजम भारो । तप जप कठिण क्रिया करइ, साथइ साधु हजारो ॥४।रि०॥ सेजा ऊपरि चढी, संथारा कीधा । समयसुन्दर कहइ साधु जी, वांद सहु सीधा ॥॥रि०॥ चार प्रत्येक बुद्ध
श्री करकण्डू प्रत्येक बुध गीतम् .
ढाल-गलियारे साजण मिल्या हुं वारी । चंपा नगरी अति भलि हं वारी,
दधिवाहन भूपाल रे हं वारी लाल । पद्मावती कूखि अपनउ हुँ वारी,
करमइ कीधउ चंडाल रे हुँवारी लाल ॥१॥ करकंडू नइ करू वंदना हुवारी,
__ पहिलउ प्रत्येक बुद्ध रे हुं वारी लाल । प्रांकणी। गिरुया नां गुण गावतां हुं वारी,
समकित थायइ सुद्ध रे हुँवारी लाल ।।क०।२॥ १ से जइ
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