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श्री खंदक शिष्य गीतम् ( २६४ ) पालक पापी घाणी पीलिया रे,
पूरब वहर संभार रे ॥१॥खं०॥ खंदग सीस नमुं सदा रे,
जिण सारया प्रातम काज रे । सबल परिसहउ जिण सह्यउ रे,.
पामियउ मुगति नउ राज रे ॥२॥ खं०॥ अनित्य भावना मनि भावतां रे,
साधु क्षमा भण्डार रे। . मुनिवर अंतगड़ केवली रे,
पहुंता मुगति मझारि रे ॥३॥ खं०॥ रुधिर भर चउ अोघउ लियउ रे,
समली जाण्यउ हाथ रे । बहिनी आंगण पड्यउ अलोख्यउ रे,
श्रादरचो अरिहंत साथ रे ॥४॥ खं०॥ श्री मुनिसुव्रत सामिना रे,
जीव दया प्रतिपाल रे। समयसुन्दर कहइ एहवा रे,
वा, वा, साधु त्रिकाल रे ॥५॥ खं०॥ इति श्री खंदग शिष्य गीतम्
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