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( २५६ ) समय सुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
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क्षण क्षण करम नो क्षय करी, संवेग शुद्ध धरंतो जी । भव सायर बोहामणउ, ते नर तुरत तरंतो जो । २२ सं० ॥ लेपी भीति धसी जती, अनुक्रमि निर्लेप थायो जी। आकर तप करतां थकां निरमल थायह कायो जी | २३ | सं०| श्रावितुं पुत्र उतावलउ, अम्ह नह तँ माधारो जी तुझ विणकुण वूढापण, करिस्यइ अम्हारी सारो जी | २४|०| विरह विलाप घणा करी, कुटंब चुकावइ साघो जी । पणि चूक नहीं साधु जी, जिण परमारथ लाखो जी | २५ | सं०| मोहनी करम लीधां थकां जे चूक अविकारो जी | ते संसार मांहे भमई, देखई दुक्ख अपारो जी | २६ सं०| ए संसार असार छ, छोड़उ राज नह रिद्धो जी । तप संजम तुम्हें आदरउ, शीघ्र लहउ जिम सिद्धो जी | २७/सं० | तात नी देसणा सांभली, वारू कीधउ विचारो जी । राज नह रिद्धि छोड़ी करी, लोधउ संजम भारो जी |२८|०| कीधा तप जप करा, उपसर्ग परीसा अपारो जी । अष्टापद ऊपरि चड्या, महाणुं अणगारो जी | २६| ० | श्री आदीसर सूँ सहु, सीधा करम खपावो जी । पाम्याँ शिव सुख सासता, सुध संजम परभावो जी | ३० सं०/ सुगडांग सूत्र उपरि कीयउ, ए संबंध प्रधानो जी । वयराग आणी वांचज्यो, धरिज्यो साथ नुं ध्यानो जी ॥३१ । सं० १
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