________________
( २६० )
समयमुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
-
-
तउ नहुइ हो हूँ लेउं एह कि,
ध्यान भुंडं मन मई धरइ ।१२। वं० । इण अत्रसरि हो ऊंचइ चड चइ कोइ कि,
साध नइ नयणे निरखियउ। ए धन धन हो ए कृत पुण्य साध कि,
हियउ दरसण हरखियउ ।१३॥ वं० । मंइ कीधू हो ए अधम नुं काम कि,
इम पातमा समझावतां । इलापुत्र हो ला केवल न्यान कि,
अनित भावना मनि भावतां ।१४।०। इम राजा हो राणी पणि जाणि कि,
नटुइ पणि केवल लघु। पोतानउ हो अवगुण मनि आणि कि,
समकित सधं सरदा ।१॥ ० । सोना नउ हो थयउ कमल ते बंस कि,
देवता आवि सानिधि करी । सोध दीधउ हो ध्रम नउ उपदेस कि,
परषदा ते पणि निस्तरी ।१६। । इलापुत्र तउ हो गयउ मुगति मझारि कि,
सासती पामी संपदा ।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org