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श्री इला पुत्र गीतम ( २५६ ) बात मानी हो इलापुत्रइ एह कि,
ऐ ऐ काम विटम्बणा। अस्त्री डोलइ हो अक्षर नइ भोलइ कि,
आगइ पणि चूका घणा । ७।०। मूंकी नइ हो कुटुम्ब परिवार कि,
विवहारियउ नटुए भिल्यउ । वित्त लेवा हो वीवाह निमिच कि, ,
राजा रंजवा नीकल्यउ । ८ ।। वंस मांड्यउ हो ऊंचउ आकाश कि,
ते परि खेलइ कला । राय राणी हो सगला मिल्या लोक कि,
देखइ ते रहइ वेगला।।। । ते नटुइ हो करि सोल शृंगार कि,
गीत गायइ रलियामणा । वलि वायइ हो डमरू ले हाथि कि,
विरुद बोलइ नटुया तणा ।१०।। जिण वेला हो नटुयउ रमइ घात कि,
राजा ते जोया नहीं। जोयइ नटुइ हो साम्ही दे दृष्टि कि,
नदुई पणि जोयई रही ।११।०। इम जाणई हो कामातुर राय कि.
नटुयउ पड़ि नई जउ मरई ।
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