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श्रीगिारनारतीरथमास
( १११ )
त्रण कल्याण जिन तया, उच्छव घणा रे। दीक्षा ज्ञान निर्वाण, जय जय गिरनार गिरे ॥२॥ अंच कदंब केली घने, सहसावने रे । समोसरचा श्री नेमि, जय जय गिरनार गिरे ॥३॥ जदुपति वंदन जावती, राजीमति रे। प्रतिबोध्या रहनेमि, जय जय गिरनार गिरे॥४॥ संव प्रजुन्न कुमर वरा, विद्याधरा रे। क्रीड़ा गिरि अभिराम, जय जय गिरनार गिरे।।शा संघपति भरतेसरू, जात्रा करू रे। थाप्या प्रथम प्रासाद, जय जय गिरनार गिरे॥६॥ फल अनंत सेव॒ञ्ज कया, शिव सुख लद्या रे।। तेह तणउ ए शृङ्ग, जय जय गिरनार गिरे ॥७॥ समुद्र विजय नृप नंदना, कृत वंदना रे । समयसुन्दर सुखकार, जय जय गिरनार गिरे॥८॥
इति भी गिरनार तीरथ भास ॥ ८ ॥
श्री गिरनार तीर्थ नेमिनाथ उलंभा भास दरि थकी मोरी बंदणा, जाणे ज्यो जिनराय । नेनिजी। उमाहउ करि आवियउ, पणि कोई अंतराय । ने०।०१।
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