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( १६६ )
समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जति
नीलड़इ घोड़इ रे, चढि आवइ असवार । संघ नी रक्षा रे, करै मारग मझार ॥४॥ विषमी ठामइ रे, जइ रह्या पारकर नइ पास। हुँ किम आधु रे, नहीं म्हारे गोडा नो वेसास ॥५॥ दूर थकी पण रे, तुमे जाणेज्यो देवा । मोरा स्वामी रे, मो मन सूधी सेवा ॥६॥ रंगे गायउ रे, रूड़उ गौड़ीचउ राया। भाव भगति सुरे, प्रणमै समयसुन्दर पाया ॥७॥
( २ ) राग-गौड़ी मिश्र ठाम ठाम ना संघ आवै यात्रा, सतर भेद करइ पूजा सनात्रा ॥१॥ गौड़ी जागतउ पारसनाथ प्रत्यक्ष गौ०॥आंकणी॥ केसर चंदन भरिय कचोल, प्रतिमा पूजइ मन रंग रोल ॥२॥ गौ०।। भावना भावइ बेकर जोड़, स्वामी भव बंधन थी छोड़ ॥३॥ गौ०॥ नटवा नाचइ शास्त्र संगीत, गंधर्व गावइ सखरा गीत ॥४॥ गौ०॥ निरखंतां धरइ नव नवा रूप, स्वामी मूगति सकल स्वरूप ॥शागौ० ।।
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