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(१२४२)
समयदरकृतिकुसुमाञ्जलि
मागीली रेनयमे वेषियउ, रिषिथंभ्यउ तिण वारो जी। दासी भइहाइ आय उतावली,
मो मुनि तेड़ी माणो जी ॥ अर० ॥२॥ पावना कीजाइसिकि घर मांगबउ, पहिरउ मोदक सारो जी। नका यौवन रस काया कई दहउ,
सफल करउ अवतारो जी ॥ अर० ॥४॥ चंद्रा बदनी रे पारित चूकव्यउ,सुख विलसइ दिन रातो जी। इक दिन गोखइ रमतउ सौगठइ,
तब दीठउ निज 'मातो जी ॥ अर० ॥शा भरहनक भाहनकारती मां फिरह,गलियहगलिया मझारोजी। कहो किवा दीठउ रे म्हारउ अरणलो,
लइ लोक हजारो जी ॥ अर० ॥६॥ उत्तर विहांधी रे जननीपाय नमह मन मइलाज्यो तिवारो जी। धिक धिक पापी म्हारा रे जीवनइ,
एह मंड अकारज धारयो जी ॥ अर० ॥७॥ अगन पंती रे सिला ऊपरह, भरसक अणसण-लीयो जी । समयसुंदर कहा धन्य ते मुनिवरु,
मन चितः फल सीघोजी ॥ अर० ॥८॥
इति मरहनक मुनि गीतम्
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