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समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
सामायक पोसह पडिकमणा, धर्म विशेष कराए। साहमी भोजन भगति महोच्छव, दिन दिन होत सवाए । प०१२। गीतारथ गुरु गुहिर गंभीर सरि, कल्प सिद्धांत सुणाए। नर भव सफल किए नर-नारी, समयसुन्दर गुण गाए । प०३।
श्री गेहिणी-तप स्तवनम् रोहिणी तप भवि अादरो रे लाल,
भव भमतां विश्राम हितकारी रे । तष विण किम निज प्रातमा रे लाल, . शुद्ध न थाय मन काम हितकारीरे। रो०१॥ दुरगंधा भव आदरयो रे लाल,
- जपियो वलि नवकार हितकारी रे। तिहां थी रोहिणी ऊपनी रे लाल,
मघवा कुल जयकार हितकारी रे । रो०२। चित्रसेन मन भावती रे लाल,
सुख गमता निसदीस हितकारी रे । वासपज्य जिन बारमउ रे लाल,
समवसरथा जगदीस हितकारी रे। रो०३। चित्रसेन वलि रोहिणी रे लाल,
आठ पुत्र सुखकार हितकारी रे । दीक्षा जिन हाथ मुंलइ रे लाल,
संयम झू चितधार हितकारी रे । रो०।४।
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