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________________ ( २४२ ) समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि सामायक पोसह पडिकमणा, धर्म विशेष कराए। साहमी भोजन भगति महोच्छव, दिन दिन होत सवाए । प०१२। गीतारथ गुरु गुहिर गंभीर सरि, कल्प सिद्धांत सुणाए। नर भव सफल किए नर-नारी, समयसुन्दर गुण गाए । प०३। श्री गेहिणी-तप स्तवनम् रोहिणी तप भवि अादरो रे लाल, भव भमतां विश्राम हितकारी रे । तष विण किम निज प्रातमा रे लाल, . शुद्ध न थाय मन काम हितकारीरे। रो०१॥ दुरगंधा भव आदरयो रे लाल, - जपियो वलि नवकार हितकारी रे। तिहां थी रोहिणी ऊपनी रे लाल, मघवा कुल जयकार हितकारी रे । रो०२। चित्रसेन मन भावती रे लाल, सुख गमता निसदीस हितकारी रे । वासपज्य जिन बारमउ रे लाल, समवसरथा जगदीस हितकारी रे। रो०३। चित्रसेन वलि रोहिणी रे लाल, आठ पुत्र सुखकार हितकारी रे । दीक्षा जिन हाथ मुंलइ रे लाल, संयम झू चितधार हितकारी रे । रो०।४। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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