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समयसुन्दरकृतिकुप्लुमाञ्जलि
श्री अनाथी मुनि गीतम् ढाल-१ मालीयड़ा नी
. २ चांदलिया नी श्रेणिक रयवाड़ी चढ्यउ, पेखियउ मुनि एकांत । वर रूप कांति मोहियउ, राय पूछइ कहउ रे विरतंत ॥१॥ श्रेणिक राय हूँ रे अनाथि निग्रंथ। तिण मइं लीघउ रे साध नउ पंथ ॥श्रे०॥ आंकणी॥ इणि कोसंबी नगरी वसइ, मुझ पिता परिघल धन्न । परिवार पूरइ परवर यउ, हुँ छूतेहनउ रे पुत्र रतन । श्रे.२। एक दिवस मुझ वेदना, ऊपनी मंइ न खमाय । मात पिता सह भूरी रह्या, पणि केणइ रे ते न लेवाय । श्रे.३ । गोरड़ी गुण मणि ओरड़ी, मोरड़ी अबला नारि । कोरड़ी पीड़ा मई सही, न किणइ कीधी रे मोरड़ी सार। श्रे.४ । बहु राजवैद्य बोलाविया, कीधला कोड़ि उपाय । बावना चंदन लावीया,पणि तउ ई रे समाधि न थाय । श्रे.५। जग मांहि को केह नहीं, ते भणी हुँ रे अनाथ । वीतराग ना भ्रम वाहिरउ,कोई नहीं रे मुगति नउ साथ । श्रे.६ । वेदना जउ मुझ उपसमइ, तउ हूं लेॐ संजम भार । इम चीतवंतां वेदन गई, व्रत लीघउ रे हरष अपार । श्रे.७ । कर जोड़ि राजा गुण स्तवइ, धन धन ए अणगार । श्रेणिक समकित तिहां लहइ,वांदी पहुँचहरेनयर मंझारि। ।
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