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जेसलमेर मण्डल महावीर जिन विज्ञ से स्तवन ( २०३ )
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पर उपगारी तूं प्रभु, दुख भंजन हो जग दीन दयाल | तिय तोरउ चरणे हूँ आवियउ, सामी मुझ नई हो निज नयण निहाल अपराधी vिe ऊधरचा, तंड कीधी हो करुणा मोरा साम । हूँ तो परम भक्त लाहरउ, तिख तारउ हो नवि ढोल नउ काम । वो. ४। सूलपाणि प्रति बूझन्या, जिय कीधा हो तुझ नई उपसर्ग । डंक दियउ खंड को सियइ, तंत्र दीधउ हो तसु आठमउ स्वर्ग । वी. ५ गोसालो गुण हीन घराउ, जिरा बोल्या हो तोरा श्रवरण वाद | ते बलतउतई राखियउ, शीतल लेश्या हो मूकी सुप्रसाद | वी. ६ । ए कुल छह इंद्र जालियङ, इम कहितां हो आयउ तुम तीर ते गौतम नई तंद किवउ, पोतानी हो प्रभुता नउ बजीर । वी. ५। वचन उथाप्या ताहरा, जे झगड़चऊ हो तुझ साथि जमाल । तेहनइ पणि परइ भने, शिवगामी हो तई कीधो कृपाल । वी. ७/ अइम उ रिसी जे रम्य, जल मांहे हो बांधी माटी नी पाल । तिरती मूकी काछली, तं तारया हो तेहनइ तत्काल | वी. ६ मेघकुमर रिषी दूव्यउ, चित चूक्यउ हो चारित थी अपार । एकावतारी तेहनड़, तें कीघउ हो करुणा भंडार | बी. १०। बारे बरस वेश्या घरs, राउ मूकी हो संयम नउ भार । नंदिषेण पण ऊधरच, सुर पदवी हो दोधी श्रति सार । वी. ११ । पंच महावृत परिहरी, गृहवासे हो वसिया वरस चौबीस I ते पण आर्द्र कुमार नइ, तई तारथउ हो तोरी एह जगीश । वी. १२ ।
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