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( २३२ )
समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि श्री घंघाणी तीर्थ स्तवनम
ढाल १-प्रभु प्रणमुरे पास जिणेसर थंभयो
पाय प्रणमूरे पद पंकज प्रभु पासना, गुण गाइस रे मुझ सन सूधी आसना । घंघाणी रे प्रतिमा प्रगट थई घणी,
तसु उत्पत्ति रे सुणजो भविक सुहामणी ॥ सुहामणी ए वात सुणजो, कुमति शंका भांजस्यै। निर्मलोथास्यै शुद्ध समकित, श्री जिन शासन गाजस्यै॥ ध्रम देश मण्डोवर महा, बल सूर राजा सोहए। तिहां गाम एक अनेक थानक, घंधाणी मन मोहए ॥१॥
दुधेला रे नाम तलाव छै जेहरउ, तसु पूठइ रे खोखर नामइ देहरउ । तसु पाछै रे खिणंता प्रगव्यउ मुंहरौ,
परियागत रे जाण निधान प्रगट्यो खरउ ।। प्रगट्यउ खरउ भूहरउ, तिण मांहि प्रतिमा अति भली। जेठ सुदी इग्यारस सोल बासठ, बिंब प्रगट्यउ मन रली। केतली प्रतिमा केहनी वलि, किण भराव्यउ भावसँ । ए कउण नगरी किण प्रतिष्ठी, ते कहुँ प्रस्ताव सँ ॥२॥ - ते सगली रे पैंसठ प्रतिमा जाणियइ,
जिन शिवनी रे सगली विगत वखाणियह।
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