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१७ प्रकार जीव अल्प बहुत्व गर्भित स्तवनम् ( २२७ ) संख कलेवर कीटी बहुली, कमले भमर भमंत । जलचर जीव मच्छ पिण बहुला, अरिहंत इम कहत॥६॥ दक्षिण नै उत्तर थोड़ा माणस सिद्ध । तेउ पिण थोड़ा, केवल निश्चय किद्ध ॥ पूरब दिशि अधिका, मोटो महाविदेह । पश्चिम दिशि अधिका, अधो ग्राम छै एह ॥७॥ अधोग्राम अधिका तिण त्रिरहे, अधिका जीव कहीजै सिद्ध आकाश प्रदेश सीझै, तिण प्रदेश रहीजै ।। सिद्ध शिला उपरि जोयण नै, चौवीसमंइ ते भागे। सिद्ध रहइ तिण ठाम अनंता, अलोक छइ ते आगै ॥८॥ वाउ काय तिणो हिवइ, अल्प बहुत्व कहिनाय । जिहां घन तिहां थोड़ो सुखिर तिहां बह वाय ॥ पूरब थोडी वाय नहीं पोलाड़ि प्रदेश । पश्चिम दिशि अधिकउ, अधो ग्राम सुविशेष ॥३॥ अधोग्राम सुविशेषइ, अधिकउ तेहथी उत्तर जाण । नारक भवन तणा आवास तिहां छइ बहु परिणाम ॥ तिहां थी दक्षिण दिशि ते अधिका तिण बहु वायु कहीजे । पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण,अनुक्रम अधिक लहीजै ॥१०॥ हिव अल्प बहत्त्व कहुँ नारक जीव नउ एह । पूरब पश्चिम उत्तर दिशि सरिखउ तेह ॥
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