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( ०२६ ) समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि इति श्रीचत्तारिअहदसदोयवदिया- इति पदविचारगर्भित
सर्वतीर्थंकरबृहत्स्तवनम् ॥ श्रीजेसलमेरसंघसमभ्यथेनया कृत संपूर्णम् ॥
१७ प्रकार जीव अल्प बहुत्व गार्भत स्तवनम् अरिहंत केवल ज्ञान अनन्त, भव दुख भंजण श्री भगवंत । प्रणमुबेकर जोड़ी पाय, जनम जनम ना पातक नाय ॥१॥ मेरु मध्य आकाश प्रदेश, गोस्तनाकार रुचक समदेश । तिहां थी चारे दिशि नीसरी, शकट ऊधि सरिखी विसतरी॥२॥ सूक्षम जीव पांचा ना भेद, ते चिहुँ दिशि सरिखा ध्र वेद । अल्प बहत्त्व कहुँ बादर तणा,किण दिशिथोड़ा किण दिश घणा ।। जिहां बहु पाणी तिहां जीव बहु, वनस्पति विंगलादिक सह । कृष्ण पक्षि बहु दक्षिण दिशे, एहयु तीर्थकर उपदिशे ॥४॥
ढाल दूसरी-श्राव्यउ तिहां न(हर एहनी. सामान्य पणे पश्चिम दिशि थोड़ा जीव, । पूर्व दिशि अधिका तिहां, नहीं गौतम दीव ॥ दक्षिण अधिका नहीं, शशि रवि गौतमकोइ । उत्तर दिशि अधिका, मान सरोवर होई ॥५॥ मान सरोवर तिहां छइ मोटउ, तिण तिहां अधिकउ पाणी । जिहां पाणी तिहां वनस्पति, बहु विगल सख्यादिक जाणी ॥
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