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समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
ताल रवाप मृदंग सब वाजित्र, घृण घृणण पाय घूघरी वागड़ ||
( २०८ )
तत् तत् थे थेईथेई पद ठावत,
भमरी भमत निज मन के रागइ ||२ ना० ॥ जिन के गुण गावत सुख पावत, भविक लोक समकित जागइ || समयसुन्दर कहह धन सुरियाभ सुर, नाटक कउ फल मुगति
मा गइ ||३ ना० ॥
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श्री महावीर गीतम्
हां हमारे वीर जी कुण रमणि एह ।
पूछति गौतम सामि जी, हमकुं एह सन्देह | १ | हां० । पुलकित तनु मोही रही, आणंद अंगि न माय । दूध पाहुउ झरि रही, सम्मुख ऊभी आय |२| हां० | चित्र लिखित पूतली, न कसइ मेष ललित कमल लोयणी, देखि रही वदति वीर गोयमा, ए हमारी ब्यासी दिवस उरि घरे, त्रिशला के देवादा ब्राह्मणी, ब्राह्मण ऋषभदत । मात पिता मुगति गए, वीर के वचन रत |५| हां० |
निमेष । तुम एष | ३ | हां० |
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अम्म ।
घरि जम्म |४| हां० |
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