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( १४२ )
समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
समयसुन्दर प्रभु तुज्ज नह,
मुगति पहिली मूकिस्यइ ॥३१॥ जादव भला भलेरा द्वारिका वसई अनेरा,
तेवर करिस्यां तेरा सखि कहउ के मेरे। राजमती कहइ एम मइ ओ कीधा सात नेम,
बीजां सुन बांधू प्रेम मेरे इक नेमि रे।। बब्बीहा के एक मेह बीजां सुनहीं सनेह,
एक तारी भली एह मेरइ मनि तेम रे। समयसुन्दर सामी संजम रमणी पामी,
मेरइ तउ अंतर जामी जिम हीरउ हेम रे ॥३२।। धन ते मृगला पोकारू ते तउंहूया उपगारू,
तिण की अतिवारू छोडाव्या जीवाकरे। धन नेमिनाथ सामि मुगति मानिनी पामि,
मदन हरामी जिण हण्यउ मारी हाक रे।। धन राजिमती नार सती में बड़ी सिरदार,
मन मंइ कीधउ विचार काम भोग खाकरे। धन ते समयसुन्दर स्तवे नेमि तीर्थंकर,
समकित सुद्ध धर दिल पणि पाक रे ॥३३॥ नगरी मइ भली द्वारिका नगरी,
नेमिनाथ जहां धरती फरसे ॥ अरु वंश में जादव वंश भलो,
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