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श्री कंसारी-बावती मंडन भीड़भंजन पार्श्वनाथ भास ( १६१ )
( २ ) राग-सबाब भीड़ भंजण तूं श्री अरिहंत,
* अलिय विधन टालइ अरिहंत ।। भी० ॥१॥ सुन्दर मूरति कलाए सोहइ,
मोहन रूप जगत मन मोहइ ।। भी० ॥२॥ भविजन भक्ति में भावना भावइ,
परमाणंद लीला सुख पावइ ।। भी० ॥३॥ पास कंसारी प्रगट प्रभावइ, । समयसुन्दर सबाबति गावइ ।। भी० ॥४॥
(३) राग-काफी भीडभंजन तुम पर वारि हो जिणंदा । सुन्दर रूप मनोहर मूरति, देखत परमाणंदा ॥१॥
तुम पर वारि हो जिणंदा । मस्तक ऊपर मुकुट विराजइ, काने कुण्डल रवि चंदा। तेज प्रताप अधिक प्रभु तेरउ, मोहि रहे नर वृन्दा ॥२॥तु०॥ पाश्वनाथ प्रकट परमेसर, वामा राणी नंदा । समयसुन्दर कर जोड़ी तेरे, प्रणमत पाय अरविंदा ॥३॥ तु०॥
(४) राग-मारुणी भीड़ भंजण रे दुखगंजण रे।
रूडी मूरति जन मन रंजण रे,
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