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महोपाध्याय समयसुन्दर
फिरङ्गी आदि की वेशभूषा का भी सुन्दर निदर्शन किया है। इसी प्रकार स्त्रियों को आभूषण की कितनी चाह होती है, इस पर गौरीरीय नारियों की मनोवृत्ति का दिग्दर्शन भी कराया है । कवि द्वारा प्राकृतिक सुषमा का चित्रण, प्रतिहारी का चित्रण, पूजारी, ब्राह्मणादि का और ज्योतिषी का चित्रण तो अपना स्वतन्त्र अस्तित्व रखता है। अन्तरङ्ग शृङ्गार गीत, नेमि शृङ्गार वैराग्य और चारित्र्य चूनड़ी आदि गीतों में तो उस युग के आभूषणों का भी उल्लेख किया है। उदाहरण स्वरूप देखिये:
सिर राखड़ी, काने उगणियाँ, चुनी, कुण्डल, चूड़ा, हार, पमारड़उ, लोलणउ, चन्दलउ, नख फूल, बिन्दली, बीटी, काटमेखला, वेडणी, काजल, महंदी, बिछिया, पुणछिया, गलइ दुलड़ी, चूनड़ी, नेउरी, तिलक आदि ।
मुहावरों की दृष्टि से--कवि ने अपने युग में प्रचलित लोकोक्तियों का भी अपनी कृतियों में स्थान-स्थान पर, सुन्दर पद्धति से समावेश किया है. इससे उन कहावतों की प्राचीनता पर भी अच्छा प्रकाश पड़ता है । उदाहरण स्वरूप देखिये:
आपणी करणी पार उतरणी, आप मुयाँ बिन सरग न जाइयइ, बातें पापड़ किमही न थाइ, सूता तेह विगूता सही जांगतां काऊ उर भय नाहि, सतारी पाडा जिणइ एह बात जग जाणे रे,
आप डूबे सारी डूब नई दुनियां, दाहिनी आँख सखीमोरी फरकी "रंगमें भंग जणावह हो"
संगीत-शास्त्र की दृष्टि से केवल छः राग और छत्तीस रागिनियों का ही इसमें समावेश नहीं है, प्रत्युत इसके
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