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महपाध्याय समयसुन्दर
( ६ )
भरदारों में किस रूप में पड़ी पड़ी बिलख रही होंगी ! नाहटा बन्धुओं ने कवि के फुटकर संग्रह को संगृहीत करने का और परिश्रम उठाकर प्रकाश में लाने का जो प्रयत्न किया है एतदर्थ वे साहित्य-समाज की ओर से अभिनन्दनीय हैं ।
उपसंहार
अन्त में मैं कवि की प्रतिभा के सम्बन्ध में वादीन्द्र हर्षनन्दन, कवि ऋषभदास और पंडित विनयचन्द्र कृत स्तुति द्वारा पुष्पाञ्जलि अर्पित करता हुआ अपनी भूमिका समाप्त करता हूँ:
"तच्छिष्य- मुख्यदक्षाः, विद्वद्वर - समयसुन्दराह्वयः । कलिकालकालिदासाः, गीतार्था ये उपाध्यायाः । प्राग्वाटशुद्धवंशाः, षड्भाषागीतिकाव्यकर्त्तारः । सिद्धान्त काव्यटीका करणादज्ञानहर्तारः ।
( उत्तराध्ययन टीका )
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वचनकला-काव्यकला, रूपकला - भाग्यरञ्जजनकलानाम् । निस्सीमावधिभूयान् सदुपाध्यायान् श्रुताध्यायान् ।
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तेषां शिष्या मुख्या, वचन - कला कविकलासु निष्णाताः । तर्क-व्याकृति - साहित्य - ज्योतिः समयतत्रविदः । प्रज्ञाप्रकर्षः प्राग्वाटे, इति सत्यं व्यधायि यः । येषां हस्तात् सिद्धिः, सन्ताने शिष्य - शिष्यादौ । ष्ट लक्षानर्थानेकपदे प्राप्य ये तु निर्ग्रन्थाः । संसारः सक सुभगाः, विशेषतः सर्वराजानाम् ।
( मध्याह्नव्याख्यान पद्धति )
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